Rampur Tiraha Kand 1 अक्टूबर 1994 कि वह काली रात आज तक कोई उत्तराखंडी नहीं भुला पाया है. मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर खाकी ने जो कहर उस रात भरपाया था. उसके जख्म अभी तक नहीं भर पाए हैं. अलग राज्य की मांग को लेकर दिल्ली जा रहे आंदोलनकारियों को पुलिस ने चुन चुन कर निशाना बनाया था. यह जर्जर दृश्य जलियांवाला बाग हत्याकांड की तरह जैसे ही अंजाम दिया गया और सबसे शर्मनाक और अमानवी मामला तब हुआ जब गोलीबारी के बाद सैकड़ों महिलाओं को पुलिस और समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने मिलकर सामूहिक बलात्कार जैसे शर्मनाक कृत्य को अंजाम दिया.
राज्य आंदोलन संघर्ष समिति ने 2 अक्टूबर को दिल्ली से जंतर मंतर पर प्रदर्शन करना तय किया था. गढ़वाल और कुमाऊं से करीब 200 से अधिक बसें दिल्ली को रवाना हुई, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने आंदोलनकारियों का आगे नहीं जाने दिया और रामपुर तिराहे पर काफिला रोक दिया. रामपुर तिराहे पर पूरी तैयारी के साथ मौजूद पुलिस प्रशासन ने आंदोलनकारियों पर पुलिस ने लाठीचार्ज और गोलियों की बौछार कर दी और इस गोलीकांड में 7 आंदोलनकारियों की मौत हुई एवं 17 आंदोलनकारी जख्मी हुए थे. आज भी इस कांड में बड़ी मात्रा में लोग लापता है. तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव पर इस भीषण हत्याकांड को अंजाम दिए जाने के आरोप लगे.
Rampur Tiraha Kand इस गोली कांड के बाद उत्तराखंड राज्य निर्माण की मांग तेज हो गई थी. अलग उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर प्रदेशभर में धरना और विरोध प्रदर्शनों का दौर चलने लगा. बच्चों से लेकर बड़े, बुजुर्ग और महिलाएं सब आंदोलन में कूद पड़े थे.राज्य के हर कोने में आंदोलन हो रहे थे.
अंतत हो 9 नवंबर 2000 में उत्तराखंड एक अलग राज्य बन गया. नई सरकार और नया राज्य बनने के बाद भी सरकार ने दोषी पुलिस वालों पर सख्ती से कोई कार्यवाही नहीं करी. 2003 में उत्तराखंड हाई कोर्ट ने 1994 के मुजफ्फरनगर डीएम आनंद कुमार सिंह को नामजद किया. जनता पर गोली चलाने का दोषी मानते हुए एक पुलिस वाले को 7 साल और 2 पुलिस वालों को 2 साल की सजा सुनाई. 2007 में सीबीआई ने एसपी राजेंद्र पाल सिंह को भी बरी कर दिया.
पिछले 20 सालों से बीजेपी कांग्रेस की सरकारें आते जाते रही है. पहाड़ की जनता ने कई मुख्यमंत्री देखे और पार्टियों में राज्य बनाने का श्रेय लेने की होड़ मची रहती है लेकिन सरकार बनने के बावजूद भी रामपुर तिराहे के दोषियों को कोई सजा नहीं दिला पाए. उत्तराखंड आंदोलन में मारे गए आंदोलनकारियों और बलात्कार पीड़ित महिलाओं को आज तक कोई भी न्याय नहीं मिल पाया.
रामपुर तिराहा कांड (Rampur Tiraha Kand) में हुए शहीद
- देहरादून नेहरु कालोनी निवासी रविंद्र रावत उर्फ गोलू
- भालावाला निवासी सतेंद्र चौहान
- बदरीपुर निवासी गिरीश भदरी
- अजबपुर निवासी राजेश लखेड़ा
- ऋषिकेश निवासी सूर्यप्रकाश थपलियाल
- ऊखीमठ निवासी अशोक कुमार
- भानियावाला निवासी राजेश नेगी
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